बहादुर टोरी: Learn Hindi with subtitles – Story for Children & Adults “BookBox.com”
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बहादुर टोरी
लेखिका – किम सोकना
हर साल
घाटी के झींगुरों का
एक उत्सव हुआ करता।
नाच-गाने
और उड़ने की प्रतियोगिताएँ होतीं।
टोरी को हमेशा
उड़ने की प्रतियोगिता देखने में
ख़ूब आनन्द मिलता।
इस साल उसने स्वयं
उसमें भाग लेने का निश्चय किया!
टोरी ने उसमें नाम दर्ज करवाने की
कोशिश की।
लेकिन प्रमुख झींगुर ने
उसे रोक दिया।
“उड़ने की प्रतियोगिता
केवल लड़कों के लिए है,”
मुखिया ने कहा।
“लड़कियों को अनुमति नहीं है।”
“यह तो सही नहीं है!”
टोरी ने कहा।
“मैं भी तेज़ी से उड़ सकती हूँ!
देखिये तो सही आप!”
टोरी ने
इतनी जल्दबाज़ी में उड़ान भरी
कि वह ठोकर खाकर गिर पड़ी।
“आउच्!” वह चीखी।
सभी लड़के उस पर हँस पड़े।
लेकिन टोरी ने हार नहीं मानी।
घर जाकर
उसने अपने माता-पिता से बात की।
“पिताजी, क्या आप मुझे
तेज़ रफ़्तार से उड़ना सिखा देंगे?”
“लेकिन क्यों?” पिता ने पूछा।
“उड़ने की बजाय
तुम्हें गाना सीखना चाहिये।”
“माँ, मैं उड़ने की प्रतियोगिता में
शामिल होना चाहती हूँ!”
उसने कहा।
“लेकिन भला क्यों?”
उसकी माँ बोलीं।
“उसमें तो केवल लड़के ही
हिस्सा लेते हैं।”
टोरी बेहद उदास थी कि
कोई भी उसकी मदद
नहीं कर रहा है।
“भला क्यों लड़कियाँ
प्रतियोगिता में
भाग नहीं ले सकतीं?”
उसने अपने-आपसे कहा।
टोरी ने ठान ली कि
वह यह अकेले ही करेगी।
वह चोरी-चोरी अभ्यास करेगी,
चुपके से प्रतियोगिता में चली जायेगी
और बस जीत लेगी।
प्रतियोंगियों की तरह
उड़ना मुश्किल था।
हवा के चलते उसके थके पंख
भनभना उठते।
वह प्रयास छोड़ देने पर
प्राय: उतारू हो गयी।
आराम करने के लिए
वह पेड़ की एक शाखा पर जा बैठी,
तब उसने एक आवाज सुनी।
‘चिप! चिप!’
घाटी के उस पार
एक माँ-पक्षी अपने शिशु को
उड़ना सिखा रही थी।
माँ ने कहा,
“भले तुम्हें डर लगे,
साहसी बनो,
और तुम यह कर सकोगी!”
टोरी जानती थी
कि प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए
वह काफ़ी साहसी है।
“मैं यह कर सकती हूँ!”
वह चिल्लायी।
टोरी ने हवा में ज़ोरदार छलाँग लगायी
और वह बिजली की तेज़ी से
घर तक जा उड़ी।
बड़ी प्रतियोगिता के दिन,
टोरी चुपके से दल में घुस गयी।
पहले तो किसी ने उस पर
ध्यान नहीं दिया।
जब तक कि…
आश्चर्यों का आश्चर्य!
टोरी समूह में सबसे आगे थी।
टोरी प्रतियोगिता जीतने-जीतने को थी कि
उसने एक भूखे कौए को
झपट कर निचे आते देखा।
“ओह नहीं!” टोरी चिल्लायी।
“मुझे दूसरे झींगुरों को
इसकी चपेट से बचाना ही होगा!”
टोरी ने साहस दिखलाया,
प्रतियोगिता छोड़ कर
वह कौए के सामने आकर बोली –
“ओ कौए! इधर देखो!
मुझे पकड़ने की कोशिश
करो तो सही!”
कौआ उसका पीछा करने लगा
और एक दूसरे झींगुर ने
अन्तिम रेखा पहले पार कर ली।
टोरी के पंख पर काटने के लिए
कौआ उसके पास तक आया नहीं कि
वह एक कँटीली झाड़ी के पास
जा गिरी।
भूखा कौआ दोबारा नीचे झपटा।
टोरी एकदम समय रहते
झाड़ी के नीचे से निकल गयी!
कौआ “काँव काँव” कर उड़ता हुआ
सीधा कँटीली झाड़ी में जा गिरा।
उसने अपने पंख फड़फड़ाये,
लेकिन वह उसमें फँस चुका था।
आख़ीर में उसने किसी तरह
अपने-आपको छुड़ाया
और उड़ गया।
दूसरे झींगुर भी
जल्दी-जल्दी उड़ चले।
“कभी यहाँ पलट कर आये तो देखना!”
वे सभी कौए पर बरसे।
एक दयालु झींगुर ने
अन्तिम सीमा पर पहुँचने में
टोरी की मदद की।
टोरी के माता-पिता
उसका इन्तज़ार कर रहे थे।
उन्होंने उसे एक सुनहरी मूर्ति
देते हुए कहा,
“टोरी, तुमने यह प्रमाणित कर दिया
कि लड़कियाँ चतुर,
तेज़ और साहसी होती हैं।
आज की विजेता तुम हो!”
सभी झींगुरों ने
जय-जयकार किया
“टोरी के लिए हुर्रे!
साहसी टोरी के लिए हुर्रे हुर्रे!”
Story: Kim Sokna
Illustrations: Seat Sopheap
Translator: Vandana Maheshwari
Narrator: Sweta Sravan Kumar (BookBox)
Music: Rajesh Gilbert
Animation: BookBox
This book was created at a Let’s Read BookLab in Cambodia
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